दारुल उलूम महबूबिया का परिचय
मदारिस इस्लामिया नबी अकरम सल्लल्लाहु अलयही वसल्लम के मुबारक ज़माने के उस चबूतरे की यादगार हैं जहाँ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलयही वसल्लम के सहाबा ने बैठ कर इल्म हासिल किया था और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलयही वसल्लम के सहाबा की निस्बत पर उस चबूतरे पर बैठने वाले सहाबा को असहाब ए सुफ़्फ़ा कहा जाता है .
यह सबसे पहला मदरसा है जहाँ सहाबा किराम ने इल्म के पढ़ने और पढ़ने की शुरुआत की थी. उस वक़्त से आज तक खुदावंद करीम के फ़ज़ल व करम से यह सिलसिला चला आ रहा है और मुसलमान इन मदरसों से इल्म दीं हासिल करके दीन इस्लाम की इशाअत व तब्लीग़ का काम अंजाम दे रहे हैं. यही दीनी मदारिस इस्लाम के वो सुरक्षित क़िले हैं जिन की हर क़स्बे और गाँव को ज़रुरत है जहाँ से मुसलमानों की दीनी और तालीमी ज़रूरियात पूरी होती है और इनही से मदारिस व मकातिब को मुअल्लिम (अध्यापक) और मस्जिदों को इमाम व हाफिज और इलाक़ों को सही मसले मसाइल बताने वाले आलिम और मुफ़्ती हज़रात मिलते हैं. और इन्ही मदारिस व मरकज़ की वजह से गफलत और जहालत दूर होती है दीनी व दुनयावी तालीम और रूहानी हैसियत से इन मदारिस और मकातिब की ज़रूरत अस्पताल और ग़िज़ाई अश्या की दुकानों से भी ज़्यादा हैं क्योंकि इनके न होने से सिर्फ शारीरिक नुक्सान होता है जबकि दीनी मदारिस के न होने से ईमान को खतरा और आख़िरत की खराबी का अंदेशा है और दुनयवि ज़िन्दगी में क्या क्या नुक्सान सामने आते हैं ये हम सब जानते हैं. इसलिए अहले इस्लाम और दीन का दर्द रखने वालों का सबसे पहला फ़र्ज़ है की वो इन दीनी क़िलों को मज़बूत बनाने में अपनी तमात तर कोशिशों और तवज्जोह को इन मदारिस और मकातिब की तरफ करें.
जहालत खुराफात और रसूमात के इस दौर में दीनी मदारिस ही इस्लाम के वो मरकज़ हैं जो न सिर्फ क़ुरआन व सुन्नत की हिफाज़त का एक अकेला ज़रीआ है बल्कि वो ऐसे लोग भी तैयार कर रहे हैं जो कि क़ुरआन व हदीस का गहरा इल्म रखने के साथ साथ दुनिया की चमक दमक से दूर रहकर मामूली तनखाह पर सब्र करते हुए दीन की ख़िदमतों में दिन रात लगे हुए हैं और उम्मत ए मुस्लिम के अंदर आख़िरत की फिक्र का जज़्बा पैदा करने की बेइंतिहा जद्दोजहद ही उनकी ज़िन्दगी का मक़सद बन गया है जिस की वजह से आज न सिर्फ इस्लाम का नाम रोशन है बल्कि पूरी दुनिया में लोग खुदा की बंदगी में लगे हुए हैं.
दीनी मरकज़ के इसी सिलसिले की एक अहम् कड़ी आपका महबूब इदारा दारुल उलूम महबूबिया लक्ष्मणगढ़ जिला सीकर (राजस्थान) भी है जब मदारिस की नूरानी फेहरिश्त की एक अहम कड़ी है. इस मदरसे की संगे बुनियाद हज़रत मौलाना ग़ुलाम मुहम्मद वुस्तानवी साहब के मुबारक हाथों से सन 2007 में रखी गयी और 14 शव्वाल 1433 हिज़री मुताबिक़ 2 सितम्बर सन 2012 में इस मदरसे में तालीम की शुरुआत हुई और इस का मक़सद सुफ़्फ़ा नबवी सल्लल्लाहु अलयही वसल्लम के मक़सद को पूरा करना है. अल्हम्दुलिल्लाह यह मदरसा शुरुआत से अब तक जामिया अक्कल कुवा की निगरानी में बहुसन व खूबी इस्लामी तालीम व तरबियत, दीनी तहज़ीब व सक़ाफ़त और नबवी फ़िक़रो किरदार को पूरा करने में लगा हुआ है. अल्हम्दुलिल्लाह